DK Nivatiya Poems: डी के निवतिया की कुछ बेहतरीन कविताओं को साझा करना।
डी. के. लंबे समय से इस समुदाय का हिस्सा हैं और उन्होंने इस पोर्टल पर कई कविताएं लिखी हैं।
यह पोस्ट उनकी कुछ कविताओं को समर्पित है जिन्हें हम संग्रहीत करने में सक्षम हैं। आशा है आप सभी ने इसे पंसद किया है।
Short DK Nivatiya Poems:
कब समझेगा
वक़्त बता रहा है तुझको तेरी खामियां,
पहचान ले अब तो अपनी नाकामिया।अब नहीं समझा तो क्या तब समझेगा,
जब मिट जायेंगी जहां से तेरी निशानियां।।
मंजर
महामारी का ऐसा खंजर न देखा था हमने कभी
इंसानी दिल इतना बंजर न देखा था हमने कभी।धरती रो रही है देखकर आज आसमान रो रहा है,
की इतना भयानक मंजर न देखा था हमने कभी।।
निशानियां
वक़्त बता रहा है तुझको तेरी खामियां,
पहचान ले अब तो अपनी नाकामिया।अब नहीं समझा तो क्या तब समझेगा,
जब मिट जायेंगी तेरी सभी निशानियां।।

नाम कर देंगे
याद रखेगा जमाना ऐसा काम कर देंगे,
ये जिन्दगी अपनी तुम्हारे नाम कर देंगे।हम जियेंगे और मरेंगे बस इक तेरे लिए
ऐलान इस बात का सारे आम कर देंगे।।
सुरूर अच्छा नहीं होता
हुस्न पर शबाब का सुरूर अच्छा नहीं होता,
खूबसूरती पर करना गुरुर अच्छा नहीं होता,पानी के बुलबुले की तरह होती है ये जिंदगी,
समझना खुद जन्नत की हूर अच्छा नहीं होता।।
कब समझोगे
अभी नहीं तो कब समझोगे,
आज नहीं तो कल समझोगे,शाशक शेर भूखा गुर्राता है,
खा जाएगा जब समझोगे !!
इश्क रूहानी
शाम सुहानी हो तो कुछ और बात हो,
साज रूमानी हो तो कुछ और बात हो,यूँ तो दीवाने हजार मिलते है हुस्न के,
इश्क रूहानी हो तो कुछ और बात हो !!

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नूतन पल
नूतन पल, बेला नई, नवल किरण की भोर !
आशा दीपक जल उठे, तन मन हुआ विभोर !!तन मन हुआ विभोर, नयन कँवल विहग जागे !
सुन भ्रमर का गान, कलियों की नींद भागे !!कहत धरम कविराय, अनमोल है जीवन फल!
लीजिये पग पसार, कठिन मिलते नूतन पल !!
नया साल
नए साल के जश्न में, बात नहीं वो शेष !
बीमारी से आज तक, जूझ रहा है देश !!जूझ रहा है देश, चिंता बहुत यह भारी !
दुनिया भर में आज, फैली है महामारी !!कहे धर्म कविराय, सारा जगत भरमाया!
बनके सबकी ढाल, आज नया साल आया !!
जड़ चेतन
मैं तो जड़ हूँ
पर तुम तो चेतन हो,
सँवार लो तुम,
दे परिचय प्रबुद्धता का,
तराश लो मुझे,
अपने मन माफिक,
कायम कर दो,
गूढ़ता की मिसाल!!!
हुनर
छोटी छोटी बातों पर अपनों से गिला क्या,
इश्क मुहब्बत में हुई बातों का सिला क्या,झुकने का हुनर जरूरी है यहां जीने के लिए,
अड़कर पर्वत के जैसे किसी को मिला क्या ।।

रूह का लिबास
साँसों की गर्म हवा बर्फ सी जमने लगे,
लबों से हर्फ़ जर्जर पेड़ से हिलने लगे,रूह ! तुम लिबास बदल लेना उस रोज़,
जिस दिन, जिस्म बोझिल लगने लगे !!
DK Nivatiya Poems
जुदा हो जाऊँगा
कोई रोकना चाहेगा लाख फिर भी जुदा हो जाऊँगा
लगाकर गले मौत को, जिंदगी से ख़फ़ा हो जाऊँगा ।।चाहकर भी कुछ न कर पायेगा य़ह तमाम ज़माना,
देखते देखते तुम्हारी महफ़िल से दफ़ा हो जाऊँगा ।।आज इल्ज़ाम देते हो बेवफाई का बेवजह मुझको,
देखना एक दिन सच में तुमसे मैं बेवफा हो जाऊँगा ।।अनगिनत फेहरिस्त लिखी है मुझ पर गुनाहों की,
जाने के बाद मैं भी नया कोरा सफा हो जाऊँगा ।।इससे पहले की सवाल आए तुम पर मेरी वजह से,
छोड़कर सब कुछ “धर्म” मैं इक तरफ़ा हो जाऊँगा ।।
औकात दिखा दी
इक बीमारी ने इंसानों को उनकी औकात दिखा दी,
इंसान के भेष में छुपे हुए हैवानों की जात दिखा दी ।कोई रोता अपनो को खोकर, कोई हँसता दिखता है,
कुछ के वारे न्यारे हुए किसी को काली रात दिखा दी ।लाशों के अम्बार लगे है, मरघट के सब दरवाजों पर,
मौत के सौदागरों द्वारा बेशर्मी की हर बात दिखा दी।कालाबाजारी जोरों पर है, मुनाफाखोरो के जमघट ने,
बेचकर अपना ज़मीर, शर्म-ओ-हया को लात दिखा दी ।अपना पराया कौन यहां पर, किस पर करे भरोसा,
मजबूरी के आलम ने हालत ऐ कायनात दिखा दी ।।
रोना याद आया
रोते हुए देखा पड़ोसी को तो रोना याद आया,
जब भूख लगी, तब फ़सल बोना याद आया ।सोया था पैर पसार कर, बड़े ही इत्मीनान से,
बिटिया हुई सयानी यकायक गौना याद आया ।दूसरों के घरों में आग लगी जब हम तापते रहे,
घर अपना जलने लगा तो संजोना याद आया ।बिखरते रहे टूटकर मोती अनगिनत मालाओं से,
टूटी अपनी माला, तो, मोती पिरोना याद आया ।दूजे के दुःख पर हँसना इंसानी फ़ितरत पुरानी है,
टीस खुद को उठी तो हकीम का कोना याद आया !उजड़ रही थी दुनियाँ, वो लगे थे कुर्सी बचाने में,
टूटी सत्ता की नींद तो उनको कोरोना याद आया ।कितने कितनों को लील गया महिषासुर कोरोना,
बारी अपनी आयी तो अपनों का खोना याद आया ।पहले खोजता रहा खामियां सबको गिनाता रहा,
देखा जो आईना, चेहरा अपना धोना याद आया ।।तुझे तो खबर थी “धर्म” नाश तेरा हर हाल होगा,
वक्त था जागने जगाने का तभी सोना याद आया।।
तेरी भी खता है
ख़ुदा की रज़ा क्या है ये किसे पता है,
किसी और को दोष देना बड़ी धता है!जो भी हुआ है सबक ले कुछ इस से,
कभी तो समझ इसमे तेरी भी खता है!खड़े थे जो कल तक सामने हाथ जोड़े,
नहीं आज किसी का भी अता-पता है!वक़्त बताता ही है सबकी हकीकत,
रहनुमा जो बनते थे सभी लापता है !उबरना होगा “धर्म” खुद ही हम सबको,
ज़माने पर आयी जो भयंकर विपदा है!!
हमदर्द ढूंढते हो
दर्द के साये में रहते हो, और हमदर्द ढूंढते हो,
बड़े नादाँ मरीज़ हो, खुद-ब-खुद मर्ज़ ढूंढते हो !!खुदगर्ज़ी की जीती जागती मिसाल हो आप,
लगा कर फ़िज़ा में आग हवाएं सर्द ढूंढते हो !!मिटा डाले है सूबूत तमाम ज़ुल्मो सितम के,
अब इस जगह पर निशान-ऐ-गर्द ढूंढते हो !!क्या आदमी हो, अजीबो गरीब शौक रखते हो,
महफ़िल में आकर भी इंसान-ऐ-फ़र्द ढूंढते हो !!चलती फिरती जिन्दा लाशें नजर आती है जहां,
उस कायर जाहिल शहर में जात-ऐ-मर्द ढूंढते हो !!
ईद मुबारक – DK Nivatiya Poems
ईद के चांद से गुज़ारिश इतनी है।
ये फ़िजा गुल ऐ गुलज़ार हो जाये ।।दुआओं में मांगा हो जिन्हें आपने।
सुबह सवेरे उनका दीदार हो जाये ।।मिट जाये रंज-ओ-ग़म दुनियां से।
अमन-ओ-चैन की भरमार हो जाये ।।माँगता हूँ फकत दुआओं में इतना।
इंसान को इंसान से प्यार हो जाये ।।गर हो जाये कुबूल अर्ज़ मेरी ऐ खुदा।
तो अपना भी ईद का त्योहार हो जाये ।।
वक़्त ही तो है गुजर जाएगा
आज बुरा है, कल अच्छा होगा
आज अकेला, कल गुच्छा होगा
बदलती है हर पल उसकी लीला,
कब कसे डोर, कब कर दे ढीला,
उसकी हवा का रुख बदल जाएगा
वक़्त ही तो है, गुजर जाएगा !!आती जाती ये दुनियादारी
जीती कब है, मौत से हारी
हार जीत का डर तुम छोडो,
इरादों से हर रुख को मोड़ो,
घना कुहासा भी छट जायेगा
वक़्त ही तो है, गुजर जाएगा !!सपनों लक्ष्यों में अंतर जानो
अपनी ऊर्जा स्वयं पहचानो,
हिम्मत धारो कदम बढ़ाओ,
धनुष पे कर्म का बाण चढ़ाओ
भारी मन भी हल्का हो जाएगा
वक़्त ही तो है, गुजर जाएगा !!मंजिल की चाह कभी न खोना,
चलता ही रहेगा ये हँसना रोना,
जीवन का खेल तो है एक परीक्षा
करते रहना तुम इसकी समीक्षा,
हल खुद ब खुद मिल जाएगा
वक़्त ही तो है, गुजर जाएगा !!हाथ बांधे अभी क्यों खड़े हो तुम
हादसों से भला क्यों डरे हो तुम
कब दुःख डटा है हौसलों के आगे
हिम्मत से ही हर मुश्किल भागे,
दौर बुरा है, ये भी निकल जाएगा,
वक़्त ही तो है, गुजर जाएगा !!
वो प्रेम नहीं
जिसका प्रदर्शन हो,
वो प्रेम नहीं,
नयनों से दर्शन हो,
वो प्रेम नहीं !!
!
जो हम-तुम करते है,
प्रेम वो नही,
जो मन मे विचरते है,
प्रेम वो नही !!
!
कलम के आंसुओ का,
नाम प्रेम नहीं,
पल-पल बदलते भावों का,
नाम प्रेम नहीं !!
!
प्रसंगो की उत्पत्ति
प्रेम आधार नहीं,
आकर्षण में लिप्त होना,
प्रेम का संचार नहीं !
!
प्रेम खुद में छुपा रहस्य है,
सृष्टि के मूल का तथ्य है,
!
प्रेम तपस्या में पाना नहीं,
स्वयं को लुटाते जाना धर्म है !
!
अनुभूतियाँ समाहित कर
वैराग्य में खो जाने का यत्न है !
!
प्रेम जिज्ञासा में प्रस्फुटित
समर्पण के अंकुरों का तंत्र है !
!
प्रेम ही जीवन का मूल मन्त्र है !
प्रेम स्वयं में बसा गूढ़ ग्रन्थ् है !!
चल देता हूँ मैं
कुछ लिखता हूँ, और लिखकर चल देता हूँ मैं,
क्रोध में भी मस्ती को भरकर चल देता हूँ मैं !है पसंद मुझे, सब के साथ घुलना मिलना,
हर शै: में पानी सा मिलकर चल देता हूँ मैं !कलम के साथ नाता पुराना है शायद मेरा,
तभी तो संग कागज़ बनकर चल देता हूँ मैं !रोने लगते है खुशियाँ पाकर जब शब्द मेरे,
आंसुओ संग खुद ही बहकर चल देता हूँ मैं !कोई करता है बातें जब खुद बड़े बड़ाई की,
मान खुद को मूरख, उठकर चल देता हूँ मैं !मुहब्बत में कुछ इस तरह फ़ना हो गया हूँ,
मेरे यार को पागल कहकर चल देता हूँ मैं !तंग आ गया हूँ सियासत के हुक्मरानो से,
देखते ही आँखों पट्टी रखकर चल देता हूँ मैं !जो रखते है इंसानियत के साथ में रिश्ता,
उन्हें प्यार से गले मिलकर चल देता हूँ मैं !!
सीख रहा हूँ
कलम लिए झूल रहा हूँ,
मैं लिखना भूल रहा हूँ,
क्योकि,
अब पढ़ना सीख रहा हूँगीत ग़ज़ल कविता दोहे,
कभी समझ आये मोहे,
उनसे अब जूझ रहा हूँ,
इसलिए,
अब पढ़ना सीख रहा हूँरास छंद अलंकारो में
काव्य की रसधारो में
काव्य शैली ढूंढ रहा हूँ
अतएव,
अब पढ़ना सीख रहा हूँ ।।भिन्न भेद लिपटे हुए
स्वरूप में सिमटे हुए,
काव्य भेद बूझ रहा हूँ
कारण,
अब पढ़ना सीख रहा हूँ ।।
तुम बहुत याद आते हो
तुम बहुत याद आते हो, क्यों इतना सताते हो
जीने देते, न मरने देते हो क्यो इतना रुलाते !!जब से तुम चले गए
दुनिया हमसे छूट गई
गम ने हमको ऐसा घेरा
ये प्रीत हमसे रूठ गईपल-पल, हर पल तुम ही तुम पास नज़र आते हो
तुम बहुत याद आते हो,
क्यों इतना सताते हो
जीने देते, न मरने देते हो,
क्यो इतना रुलाते !!ये दिल हुआ ऐसा बावरा
हम अपना पराया भूल गए,
दिन-रात का होश नहीं
हम अपना साया भूल गए,जिंदगी से ऐसे रूठें सपनों में भी न अब आते हो
तुम बहुत याद आते हो,
क्यों इतना सताते हो
जीने देते, न मरने देते हो,
क्यो इतना रुलाते !!किसको हम अपना कहे
अब किसको कहे पराया,
जिसे हमने अपना जाना
वक़्त पड़े दूर उसे ही पाया,
देते हो पहले जख्म फिर खुद ही सहलाते हो !
तुम बहुत याद आते हो,
क्यों इतना सताते हो
जीने देते, न मरने देते हो
क्यो इतना रुलाते हो !!