Kavya by Subhash Singh

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जनता

नेता और जनता की

ये कैसी आंखमिचोली है

की नेता कितने घाग

जनता कितनी भोली है

दोनों ही इस बात को

बखूबी जानते है

पर कोई आदत से

मजबूर है

और कोई मजबूरी

से मजबूर है

ये मजबूरी ही तो है

जिस कारन

जनता को नेता की

जीत का जश्न भी मनाना है !

और कोरोना से मरने

वाले अपनों का मातम भी !

दौलत का करिश्मा

वाह री दौलत तेरा करिश्मा भी कैसा करिश्मा  है ? की जिसका अभाव हज़ारों कीमती जिंदगियोंको लील गया !और जिसका बेहिसाब अम्बार भी कुछ तथाकथित वी आई पी जिंदगियों को बचा न सका  !

अकड़

जब तक जिस्म में जान रही तब तक अकड़ आँखों की पहचान रही और जिस्म से जान निकलते ही यह आँखों से तो जाती रही मगर खुद जिस्म की ही पहचान हो गयी

रोशनी

रोशनी की अगर तुम्हे तलाश है तो बाहर मत देखो बाहर तो सिर्फ़ अंधेरा और सिर्फ़ अंधेरा है ढूँढते रह जाओगे और अंधेरो मे गहरे कहीं खो जाओगे तुम्हारे चारों तरफ़ फैला अंधकार तुम्हे डरा देगा रोशनी चाहिए तो अपने अंदर झाँको और चमक उत्पन्न करो वैसे ही जैसे अनंत अंधेरे आकाश मे नन्हा तारा सिर्फ़ अपनी रोशनी के दम पर निडर हो चमकता है

Subhash Singh

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