By HindiSahitya.org
नन्हा पौधा हुआ करता था कभी, तोड़ते मरोड़ते थे आने जाने वाले सभी, फिर भी बढना ना छोड़ा मैंने कभी इक विशाल पेड़ हुआ करता था कभी, आने जाने वाले आश्रय लेते थे सभी, पक्षी अपने घोसले, मनुष्य रहा करते थे सभी
तू आया था उन बादलों की तरह , जो बरस कर चला गया, धरती फिर भी प्यासी रही , बिन पानी रेतीले इलाकों तरह।
ऋतुओं के संग-संग मौसम बदले, बदल गया धरा पे जीवन आधार, मानव तेरी विलासिता चाहत में, उजड़ रहा है नित प्रकृति का श्रृंगार, दरख्त-बेल, घास-फूंस व् झाड़ियाँ, धरा से मिट रहा हरियाली आधार !!
माँ, बादलों में रहने वाले लोग मुझे पुकारते हैं- जब से हम जागते हैं तब तक हम खेलते हैं दिन समाप्त होने तक।
गर्मी ने किया बुरा है हाल, आज ग्लोबल हुआ है लाल। ग्लेशियर पिघले हालम-हाल, ख़ुद को पाया नहीं सम्हाल। नदियों में इसने फेंका है ज़ाल, हर घर में आया है काल।
एक ऊंची लहर आती है, साथ बर्बादी लाती है, पीछे तबाही का मंजर छोड़, साथ सबकुछ ले जाती है,
वन्य जीवो की भूमी, जो इंसानों ने कब्जा ली थी। आज कोरोना ने उनकी, भूमि को वापस लौट आया है।।
अब तो मचा है हाहाकार, वृक्ष बिना बुरा हुआ है हाल। मानव ने यह किया कमाल, ख़ुद को पाएं नहीं सम्हाल।।