दुनिया की किताब पढ़ी नही जाती जमाना है सीखा देता,
लगता है बड़ा उस्ताद मतलब की बात बता देता,
पला गोद में कभी, खड़ा आंगन में था
जब तक गमले में था, रहती रोज पूजा थी
आज निकला गमले से तो कहता मैंने कर्म किया,
सींचा माली न होता तो, होता कैसे पेड़,
यह देखकर बूढ़े पेड़ के मन में ये ख्याल आया,
लगती पानी भी बोझ है जब बारिश अथाह हो,
सब तारीफे पुल बांधे, बूढ़ा बांधे अपने यार की,
कटते पेड़ ने नीद का बहाना बनाकर महफिल छोड़ दिया,
उगते पेड़ ने आहत न की, लगता न था कि,
आदत बड़ी तनख्वाह सी है,
कम्बक्त ये सोच कर कटवा दिया पेड़
आंगन में मेरे होकर देता छाया पड़ोसी को।
अक्ल आती भी कैसे उगते ही सोच लिया था,
अनन्त हु बूढ़ा तो हो हूंगा नहीं
न गुजरेगी मुजपे जो गुजरे उस बूढ़े मेरे आराध्या पे।