शिक्षक दिवस की कविताएँ।

हिंदी साहित्य

यदि शिक्षक संतुष्ट नहीं रहेगा तो हमारे बच्चों का भबिष्य क्या होगा देश सेबा में उनका कितना योगदान होगा और हम किस दिशा में जा रहें हैं समझना ज्यादा मुश्किल नहीं हैं।

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शिक्षक-दिवस मनाने आये हम सब लोग यहाँ पर हैं। एक गुरु की आवश्यकता पड़ती हमें निरन्तर है । हमनें जो भी सीखा अपने गुरुओं से ही सीखा है। ज्ञान गुरू का अन्धकार में जैसे सूर्य सरीखा है।

कदम-कदम पर ठोकर खाते शिक्षा अगर नहीं होती। खुद को रस्तों पर भटकाते शिक्षा अगर नहीं होती। शिक्षा ये बेमानी होती शिक्षक अगर नहीं होते। बस केवल नादानी होती शिक्षक अगर नहीं होते।

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शिक्षक-दिवस मनाने आये हम सब लोग यहाँ पर हैं। एक गुरु की आवश्यकता पड़ती हमें निरन्तर है । हमनें जो भी सीखा अपने गुरुओं से ही सीखा है। ज्ञान गुरू का अन्धकार में जैसे सूर्य सरीखा है।

आगे बढने का पथ हमको शिक्षक ही दिखलाते हैं। सही गलत का निर्णय करना शिक्षक ही सिखलाते हैं। शिक्षक क्या होते हैं सबको आज बताने आया हूँ। मैं सारे शिक्षकगण का आभार जताने आया हूँ।

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अगर वशिष्ठ नहीं होते तो शायद राम नहीं होते। सन्दीपन शिक्षा ना देते तो घनश्याम नहीं होते। द्रोणाचार्य बिना कोई अर्जुन कैसे बन सकता है। रमाकान्त आचरेकर बिन सचिन कैसे बन सकता है।

परमहंस ने हमें विवेकानन्द सरीखा शिष्य दिया। गोखले ने गाँधी जैसा उज्जवल एक भविष्य दिया। चन्द्रगुप्त चाणक्य के बल पर वैसा शासक बन पाया। देशप्रेम आज़ाद ने हमको कपिलदेव से मिलवाया।

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भीमसेन जोशी के सुर या बिस्मिल्ला की शहनाई। गुरुओं की शिक्षा ने ही तो इनको शोहरत दिलवाई। शुक्राचार्य, वृहस्पति हैं ये इन्हें मनाने आया हूँ। मैं सारे शिक्षकगण का आभार जताने आया हूँ।

फिर हम विद्यालय में आये अक्षर ज्ञान हुआ हमको। भाषा और कई विषयों का ज्ञान प्रदान हुआ हमको। गुरू ने हमको शिक्षा दी संयम की, अनुशासन की। गुण-अवगुण की, सही-गलत की, देशप्रेम और शासन की।

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लेकिन हम सब शिक्षा पाकर भूल गुरू को जाते हैं। केवल पाँच सितम्बर को ही याद गुरू क्यों आते हैं। मैं सबको अपने गुरुओं की याद दिलाने आया हूँ। मैं सारे शिक्षकगण का आभार जताने आया हूँ।

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