यू तो आज बहुत खुश हूं मे,
पर थोड़ा- सा उदास भी हूं मे |
आज खाली बैठे – बैठे सोच रहा हूं ,
मे जी रहा हूं या फिर मर रहा हूं |
मेरा आज खुद से ये सवाल है,
शिवम तू क्यों इतना पागल है |
क्यों करता है तू विश्वास सब पर,
अंत मे वो ही करते हैं प्रहार तुझ पर |
फिर भी तू अंजाना है कुछ नहीं समझने वाला है,
छल तुझको कभी समझ न आया न ही तू छल करने वाला है |
जीवन मे कहने को तो बहुत मित्र हैं,
पर वो भी तो चित्र विचित्र हैं|
मुशीबत में छोड़ चले जाते खुशियों में गले लगाते हैं,
अर ! मित्रता किसे कहते है ये श्री कृष्ण से सीखे जाते हैं |
विश्वास रखो तो अर्जुन जैसा,
धर्म – अधर्म की बात करे तो बनो युधिष्ठिर के जैसे |
कर्ण के जैसे युद्ध में प्राण पे प्राण लड़ा दे,
श्री कृष्ण के जैसे बिना लड़े ही match जीता दे |
ठीक इसी तरह कुछ ऐसे मित्र भी है मेरे,
जो रहते सदा हर सुख दुख में साथ हैं मेरे,
नाम तो उनके नहीं लूंगा में,
पर वो रहते सदा दिल मे मेरे |
– शिवम सर्वकाल