न वक्त से हुआ, न गुलजार से हुआ,कलाम तो दुखी जाहान से हुआ,तडप के रह गये खुले परिन्दे के ताराजूखुदा भी उनका गुलाम जो हुआ । न गुल अपना न बदन अपना,न ये कम्बख्त बेगम अपना,न जाने कैसी मोहब्बत करी हमनें,रहा न खुद का जालिम दिल भी अपना और पढ़े.. मेरे जीवन के मित्र – शिवम सर्वकाल मित्रता पर निहाल सिंह की कविता बचपन के मुस्कुराते जिद्दी चहरे 0 0 0 Tweet 0 Share 0 Pin it 0 Leave a Reply Cancel replyYou must be logged in to post a comment.