सोरठा राम रहीमा काव्य बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ द्वारा लिखित है।
मंजुल मुद आनंद, राम-चरित कलि अघ हरण।
भव अधिताप निकंद, मोह निशा रवि सम दलन।।
हरें जगत-संताप, नमो भक्त-वत्सल प्रभो।
भव-वारिध के आप, मंदर सम नगराज हैं।।
शिला और पाषाण, राम नाम से तैरते।
जग से हो कल्याण, जपे नाम रघुनाथ का।।
जग में है अनमोल, विमल कीर्ति प्रभु राम की।
इसका कछु नहिं तोल, सुमिरन कर नर तुम सदा।।
हृदय बसाऊँ राम, चरण कमल सिरनाय के।
सभी बनाओ काम, तुम बिन दूजा कौन है।।
गले लगा वनवास, बनना चाहो राम तो।
मत हो कभी उदास, धीर वीर बन के रहो।।
रखो राम पे आस, हो अधीर मन जब कभी।
प्राणी तेरे पास, कष्ट कभी फटके नहीं।।
सुध ले वो रघुबीर, दर्शन के प्यासे नयन।
कब से हृदय अधीर, अब तो प्यास मिटाइये।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन‘
तिनसुकिया